Gulmohar review: गुलमोहर एक इमोशनल कहानी है जो आपका दिल चुरा लेगी. यह फिल्म अजीब ज्ञान की गहरी भावना है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. फिल्म निर्देशक मीरा नायर के दिल्ली के खूबसूरत घर में शूट किया गया , फिल्म का लुक देखने लायक है. पता चलता है कि पुश्तैनी घरों से कितनी यादें जुड़ी होती हैं और घर के हर कोने में एक कहानी होती है.
बिखरते परिवार की कहानी है “गुलमोहर” (Gulmohar review)
राहुल चित्तेला द्वारा निर्देशित यह फिल्म भावनात्मक संबंधों, परिवार के सदस्यों के प्यार और परिवार को एक साथ जोड़े रखने वाले सभी तत्वों की कहानी है. इस फिल्म हमें अनुकूलनीय होना और परिवर्तन को अनुग्रह के साथ स्वीकार करना सिखाती है. एक ऐसी फिल्म जो कई लोगों से संबंधित हो सकती है जहां सभी विशाल बंगले उच्च वृद्धि वाले अपार्टमेंट में परिवर्तित हो रहे हैं और जब आप अपना पुश्तैनी घर छोड़ते हैं तो यह आपकी यादों को अपने दिल में लपेटने जैसा है.
फिल्म में आप मां के रोल में शर्मिला टैगोर को देखेंगे, जिस ग्रेस से उन्होंने अपना किरदार निभाया, लगता नहीं कि ये उनकी कमबैक फिल्म है. उनके बेटे अरुण बने हैं मनोज बाजपेयी. हर फिल्म के साथ वो खुद को इवॉल्व करते रहे हैं. उनका हर किरदार दूसरे से जुदा है. फिल्म में एक सीन है. वसीयतनामे की बात है. पूरा परिवार एक जगह जमा है. आपका ध्यान खींचे रहते हैं मनोज बाजपेयी और शर्मिला टैगोर. उस सीन में मनोज बाजपेयी का किरदार किसी 50-55 साल के आदमी जैसा नहीं लगता. बल्कि एक बच्चे जैसा है. जो अपनाया जाना चाहता था. जिसने अब तक जिस चीज़ में भरोसा किया, वो बिखरकर टुकड़े हो गई.
निर्देशक राहुल चित्तेल्ला ने इस फिल्म में एक ऐसे परिवार को सामने लाया है जिसमें नई पीढ़ी के अरमान अलग हैं. आजकल यौन संबंधों में कई तरह की चीजों का समावेश हो रहा है जिसके बारे में पुरानी पीढ़ी सोच भी नहीं सकती है. जैसे स्त्रियों के बीच समलैंगिता. लेकिन पुरानी पीढ़ी की ही कुसुम बत्रा अपने पौत्री को लेकर इसे सहज ही स्वीकार कर लेती है. धीरे धीरे पीढ़ियों का तनाव घुलने लगता है.
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