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मध्य प्रदेश में भाजपा ने अबकी बार मामा शिवराज को क्यों नहीं घोषित किया मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी,पढ़ें विश्लेषण

MP Election 2023: मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव प्रचार अब थम चुका है, जनता अपना नेता चुनने को तैयार है। एमपी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी से लेकर कांग्रेस और सपा समेत अन्य दलों ने प्रचार में पूरा जोर लगा दिया था, लेकिन जनता किसे अपना मुख्यमंत्री चुनती है यह तो परिणाम ही बताएगा. बीजेपी से लेकर कांग्रेस दोनों ही जीत को लेकर अपना दावा कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी भी इस बार का चुनाव बिना सीएम फेस के लड़ रही है. जिसको लेकर भी राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल है, कुछ लोग इसे सीएम बदलने की प्रक्रिया तो कुछ लोग इसे जीत का नया दाव बता रहे हैं. आइए विस्तार से जानते हैं कि भाजपा ने इस बार सीएम फेस को लेकर आखिर क्यों सस्पेंस बनाये रखा है.

नरेंद्र मोदी के चहरे पर लड़ा जा रहा चुनाव 

एमपी विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा दावा कर रही है कि मध्य प्रदेश में जोरदार विकास हुआ है लेकिन शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली उसकी सरकार के पिछले दो दशकों के कार्यकाल में राज्‍य पर से बीमारू का टैग नहीं हट पाया है. इस बार के चुनाव में भाजपा ने कहा था कि वह सामूहिक नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभियान के अगुआ रहेंगे. दरअसल, पार्टी ने प्रचार के लिए ‘एमपी के मन मोदी’ का नारा गढ़ा है.

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लाडली बहना योजना दिखा सकती है कमाल 

खास बात यह है कि भले ही चौहान को सीएम फेस नहीं बनाया गया लेकिन भाजपा उनकी प्रमुख योजनाओं, खासकर चुनाव से पहले शुरू की गई ‘लाडली बहना योजना’ पर सबसे अधिक भरोसा की है. पार्टी कार्यकर्ता और नेता यह कहने में संकोच नहीं करेंगे कि यह ‘लाडली बहना योजना’ ही थी जिसने भाजपा को लड़ाई में वापस ला दिया.
तो वहीं कुछ राजनीति के जानकारों का मानना  है कि मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की यह प्रक्रिया हैं. जबकि कुछ अन्य जानकारों का मानना है कि चौहान को छाया में रखना सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने की भाजपा की रणनीति है.

शिवराज सिंह चौहान ने दूसरे नेताओं को किया किनारे 

बात करें शिवराज सिंह चौहान की तो मुख्य रूप से दो पहलुओं में मध्य प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत की है. पहला उन्होंने अपनी प्रमुख योजनाओं के जरिए लोगों से अपने पार्टी को जोड़ने की कोशिश की है. दूसरा, पिछले दो दशकों में जिस किसी ने भी उनकी स्थिति को चुनौती दी, उन्हें राज्य की राजनीति में किनारे कर दिया गया। फिर वह चाहे कैलाश विजयवर्गीय हों या पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा. पिछले तीन दशकों से शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में भाजपा के दूसरे स्तर के नेतृत्व को पैर जमाने नहीं दिया. यही मुख्य कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व उनका विकल्‍प खोजने में सफल नहीं हो सका है लेकिन अबकी बार मोदी और शाह की जोड़ी शिवराज सिंह चौहान को आगे ना करके सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ना चाहती है.जिससे अगर चुनाव वह जीत जाए तो किसी नए नेतृत्व के हाथ में राज्य की कमान दी जाए.

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