Success Story DSP Shahida Praveen: शाहिदा परवीन (DSP Shahida Praveen)जम्मू-कश्मीर पुलिस कमांडो विंग की जांबाज अफसर है. बता दे शाहिदा परवीन स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) की पहली महिला कमांडो में से एक जिन्हें शुरुआती सालों में ही बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित किया गया था. शाहिदा परवीन ने 90 के दशक में मुख्य रूप से पुरुष बल में एक मुठभेड़ विशेषज्ञ के रूप में पहचान हासिल की है.जबकि आज भी हमारे देश में फील्ड ड्यूटी में महिलाओं की तैनाती विरल है.
वह राजौरी और पुंछ जिलों में हिजबुल और लश्कर के खूंखार आतंकियों से सीधी टक्कर ले चुकी हैं. उन्होंने सैंकड़ों आतंकवादी को धूल चाट दिया है. जिस वजह से उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ऑफिसर के तौर पर जाना जाता है. हालांकि, एक घरेलू लड़की से एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनने का सफर इतना भी आसान नहीं था. आज भी देश में ऐसे कई लोग हैं जो लड़कियों को केवल घरेलू कामों के लिए मानते हैं. ऐसे में शाहिदा परवीन उन लड़कियों के लिए एक मसीहा बनाकर उभरी है और उस धारणा को ध्वस्त करने में लगी हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दे शुरुआत में जब शाहिदा को एक ऑपरेशन के नाकामयाबी मिली थी तब उनके सीनियर ऑफिसर ने उनसे कहा था- लड़कियों का काम चूल्हा-चौका और बर्तन माजना है, जंग लड़ना नहीं. साथ ही ये भी कहा था कि मर्दों के काम में हाथ डालोगी तो ऐसा ही होगा.
‘मैं हर किसी को दिखाना चाहती थी कि मैं कर सकती हूं’- Success Story
मीडिया से बातचीत करते हुए डीएसपी शाहिदा परवीन ने बताया कि, जब मेरी भर्ती सेना में हुई तब “मेरे वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे ऑपरेशन के लिए जाने के लिए नहीं कहा, लेकिन उन्होंने मुझे जानकारी इकट्ठा करने के लिए कहा और कहा, ‘तुम जानकारी ले कर आओ, हम उस पर काम करेंगे. तुम्हें कोई खतरा नहीं होगा. ‘ उन्होंने सोचा, ‘लड़कियां कमजोर होती है. ये डर जाएंगी. कहां जाएंगी ये एनकाउंटर में?’’शाहिदा याद करती हैं कि पहली बार उन्हें जानकारी कैसे मिली और उन्होंने इसे अपने वरिष्ठ को नहीं देने का फैसला किया. वह कहती हैं, “जिस सूचना के लिए मैंने दो-तीन महीने लगा दिए, वो किसी और को दे दूं क्योंकि ये लोग सोचते हैं लड़की क्या जाएगी एनकाउंटर में? इसके बजाय मैं अपनी टीम के साथ आगे बढ़ी. यह मेरा पहला प्रोजेक्ट था जिसमें मैं असफल रही.
लेकिन यह असफलता केवल मेरे कारण नहीं हुई बल्कि उस समय ज्यादा टीम नहीं होने के कारण ऐसा हुआ था. मेरे वरिष्ठ अधिकारी को मेरे पे गर्व था. लेकिन कुछ सीनियर ऑफिसर ने कहा –‘ये क्या लड़कियों का काम है? लड़कियों का काम है चूल्हा चौंका और बर्तन मांजना है. मर्दों के काम में हाथ डालेंगे तो ऐसे ही होगा. ‘’वह कहती है कि उस दिन मैंने खुद से वादा किया था, “एक दिन केवल इसे नहीं, इस राज्य को नहीं, पूरी दुनिया को दिखा दूंगी कि ये बर्तन मांजने वाली क्या कर सकती है? और उस दिन के बाद से मैंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
मेरा ध्यान अपने कर्तव्यों को पूरा करने पर था’
हाल ही में कॉलेज के छात्रों को संबोधित करते हुए, शाहिदा ने उन्हें बताया कि पुलिस बल में शामिल होने से पहले उन्हें बहुत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है. उसने साझा किया कि जब वह पुलिस परीक्षा में पास करने के लिए सुबह 4 बजे उठाकर दौड़ा करती थी, तब “आतंकवादियों से ज्यादा डर उन्हें लोगों के बातों से लगता था कि लोग क्या कहेंगे? इनकी बेटी सुबह सुबह भाग रही है”
उन्होंने कहा कि सेना में शामिल होने के बाद ‘लोग क्या कहेंगे’ को लेकर उनका नजरिया बदल गया. उसके बाद “मेरा पूरा ध्यान अपने कर्तव्यों को पूरा करने पर था. अगर मैंने इस बात पर ध्यान दिया होता कि लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं तो मैं परफॉर्म नहीं कर पाती और आज इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती ”
आगे शाहिदा कहती हैं कि ड्यूटी के दौरान उन्हें मारे जाने के ख्याल से डर नहीं लगा क्योंकि वह किसी भी पल मरने के लिए तैयार थीं. शाहिदा ने कहा, ‘मैं अपनी एके-47 के साथ पिस्टल रखती थी. उनके मन में यह चलता था कि अगर मैं अकेली हूँ और पकड़े जाने वाली हूँ, तो मैं अपनी जान की रक्षा के लिए पिस्तौल का इस्तेमाल करूंगी. हर दिन जब हम अपनी जीप में निकलते थे, तो मैं अपने ड्राइवर से कहती था, ‘गाने चलाओ. क्या पता वापस आए न आए. आशा करती हूं आपको इस बहादुर योद्धा से जुड़ी कहानी से काफी कुछ सीखने को मिला होगा.
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